Friday, July 12, 2013

हाँ ! मुझे डर लगता है....

भले मैं निडर दिखने की लाख कोशिशें करुं
पर अक्सर मेरा भी मन सहरता है
हाँ, मुझे डर लगता है।
नफरत से नहीं,
मोहब्बत से..
बगावत से नहीं
खिलाफत से..
बेरुखी से नहीं वादों से,
लोगों के मीठे इरादों से
अक्सर मन सहर उठता है
हाँ, मुझे डर लगता है।।
दुश्मनों से लड़ने की तैयारी है पहले से
मेरी मुश्किल है दोस्तों से कैसे निपटा जाये
बद्दुआओं को सहने का तो दम रखता हूँ
उलझन है कि दुआओं को कैसे सहा जाये..
प्रियतम,
तुम्हारे गुस्से से नहीं
मीठी बातों से
अक्सर मन सहर उठता है
हाँ, मुझे डर लगता है।।
दर्द में कहाँ ताकत थी मुझे तकलीफ दे,
दवा ने मेरी बेचैनी को बढ़ाया है..
गैरो की बेरुखी क्या सता सकती मुझे,
अपनों की मोहब्बत ने जितना सताया है..
इंसान होके इंसान से क्या डरना
लेकिन बात खुदा की हो
तो अक्सर मन सहर उठता है
हाँ, मुझे डर लगता है।।
भले मैं निडर दिखने.........

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